hindisamay head


अ+ अ-

कविता

काशी का न्याय

श्रीकांत वर्मा


सभा बरखास्त हो चुकी
सभासद चलें

जो होना था सो हुआ
अब हम, मुँह क्यों लटकाए हुए हैं?
क्या कशमकश है?
किससे डर रहे हैं?

फैसला हमने नहीं लिया -
सिर हिलाने का मतलब फैसला लेना नहीं होता
हमने तो सोच-विचार तक नहीं किया

बहसियों ने बहस की
हमने क्या किया?

हमारा क्या दोष?
न हम सभा बुलाते हैं
न फैसला सुनाते हैं
वर्ष में एक बार
काशी आते हैं -
सिर्फ यह कहने के लिए
कि सभा बुलाने की भी आवश्यकता नहीं
हर व्यक्ति का फैसला
जन्म के पहले हो चुका है।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में श्रीकांत वर्मा की रचनाएँ